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जोशीमठ समेत लगभग सभी हिमालयन क्षेत्र गहरे खतरे के घेरे में, जमींदोज की कार्यवाही शुरू 

जोशीमठ

जोशीमठ - Photo by : Amar Ujala

जोशीमठ   Published by: admin , Date: 11/01/2023 02:40:57 pm Share:
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  • 11/01/2023 02:40:57 pm
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संक्षेप

जोशीमठ की जमीन लगातार धंसती जा रही है। राज्य सरकार ने घरों की पहचान कर उन्हें जमींदोज करने का कार्य शुरू कर दिया है। बता दें कि, राज्य सरकार की इस कार्यवाही की शुरुआत बीते मंगलवार से हो गई थी। ठीक जोशीमठ की तरह ही कर्णप्रयाग और उत्तरकाशी से भी भू-धंसाव के मामले सामने आ रहे हैं। दूसरी ओर नैनीताल के चायना पीक की पहाड़ियों में भी कई दरारें देखने को मिली। विशेषज्ञों और वैज्ञानिकों का कहना हैं कि, जोशीमठ समेत लगभग सभी हिमालयन क्षेत्रों में एक बड़ा खतरा मंडरा रहा है। 

विस्तार

जोशीमठ की जमीन लगातार धंसती जा रही है। राज्य सरकार ने घरों की पहचान कर उन्हें जमींदोज करने का कार्य शुरू कर दिया है। बता दें कि, राज्य सरकार की इस कार्यवाही की शुरुआत बीते मंगलवार से हो गई थी। ठीक जोशीमठ की तरह ही कर्णप्रयाग और उत्तरकाशी से भी भू-धंसाव के मामले सामने आ रहे हैं। दूसरी ओर नैनीताल के चायना पीक की पहाड़ियों में भी कई दरारें देखने को मिली। विशेषज्ञों और वैज्ञानिकों का कहना हैं कि, जोशीमठ समेत लगभग सभी हिमालयन क्षेत्रों में एक बड़ा खतरा मंडरा रहा है। 

किस क्षेत्र में मंडरा रहा खतरा? 

भू-धंसाव मामले में IIT कानपुर के भू-विज्ञान विभाग प्रोफेसर और भू-वैज्ञानिक प्रो. राजीव सिन्हा ने बताया कि, 'इस वक्त पूरा हिमालयन रेंज बारूद के ढेर पर बैठा हुआ है। इसका मतलब पूरे रेंज को खतरा है, जिसमे उत्तराखंड के साथ ही हिमाचल प्रदेश, लेह-लद्दाख और अरुणाचल प्रदेश के कुछ हिस्से भी शामिल हैं। उत्तराखंड का पिथौरागढ़, बागेश्वर, उत्तरकाशी, चमोली और रुद्रप्रयाग जिला भूकंप के जोन-5 में आता है। वहीं भूकंप के जोन-4 में सिस्मिक ऊधमसिंहनगर, नैनीताल, चंपावत, हरिद्वार, पौड़ी गढ़वाल और अल्मोड़ा शामिल है। देहरादून और टिहरी का हिस्सा दोनों जोन में शामिल है। उत्तराखंड के लगभग सभी जिलों में प्राकृतिक आपदाओं के आने की आशंका बनी हुई है।' 

आगे उन्होंने बताया कि, 'हिमाचल प्रदेश के ज्यादातर क्षेत्र भूकंप की दृष्टि से अति संवेदनशील हैं, जिसमे से कि, लाहौल स्पीति, कांगड़ा, चंबा और शिमला का कुछ क्षेत्र जोन-5 में आता है। वहीं मंडी, बिलासपुर, हमीरपुर, सोलन, ऊना इत्यादि जिलों के ज्यादातर क्षेत्र जोन-4 में आते हैं। जोन-5 अति संवेदनशील तथा जोन-4 संवेदनशील हैं। यहां बार-बार भूकंप के झटके आते रहते हैं।'

क्या है इस समस्या का समाधान ? 

1. सर्वे के माध्यम से अतिसंदेवनशील इलाकों की पहचान करें 

प्रो. सिन्हा द्वारा दी गई जानकारी के मुताबिक, केवल 'जोशीमठ, नैनीताल, कर्णप्रयाग और उत्तरकाशी ही नहीं, बल्कि हिमालयन रेंज के तहत आने वाले सभी जिलों का तुरंत सर्वे करवाना बेहद आवयश्क है। ऐसी जगहों  खतरों को चिन्हित करना बेहद जरूरी है। ऐसा करने से समय रहते बड़ी तबाही से लोगों की जान-माल का खतरा टाला जा सकता है।' 

2. योजना बनाए बिना क्षेत्र का विकास तुरंत रोका जाए 

'हिमालयन रेंज के तहत जो भी विकास के कार्य हो रहे हैं, उन्हें तुरंत रोका जाना चाहिए। योजना बनाकर और शोध करके ही इस तरह के कामों को आगे बढ़ाया जाना चाहिए। रिसर्च करने से मालूम चल पाएगा कि किस जगह क्या और कितना काम हो सकता है।' 

3. घाटी पर स्टडी करके बफर जोन निर्धारित किए जाएं 

'उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश व अन्य सभी हिमालयन रेंज की तुरंत स्टडी शुरू होनी चाहिए। घाटियों को बफर जोन में बांटना चाहिए। इसकी स्टडी करके ये पता करना चाहिए नदी के किनारे कितनी दूरी तक का इलाका संवेदनशील है, जहां किसी भी तरह के निर्माण कार्य पर प्रतिबंध लगाना होगा। अगर यह अभी नहीं होगा तो जोशीमठ और कर्णप्रयाग की तरह कई और इलाकों में इस तरह की घटनाएं हो सकती हैं।' 

4. पहाड़ों पर गांव और कस्बे सुनियोजित तरीके से बसाए जाएं 

उनका कहना हैं कि, घाटी पर अध्ययन के बाद मिली रिपोर्ट के मुताबिक ही पहाड़ों पर गांव और कस्बे बसाए जाएं। यह आवयश्क नहीं कि, अगर कहीं एक लंबे समय तक कोई आपदा नहीं आई तो वह सुरक्षित जगह हो।