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मध्य प्रदेश: बैंक पेंशनर्स के M.C. Singla मामले में शीघ्र न्याय सूर्यकांत जी से हस्तक्षेप की माँग
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संक्षेप
मध्य प्रदेश: माननीय मुख्य न्यायाधीश श्री सूर्यकांत जी को हार्दिक धन्यवा मान्यवर आपने 16 वर्ष से लंबित एसिड अटैक केस (2009) पर जो स्पष्ट, कठोर और साहसिक टिप्पणी की वह केवल एक नि
विस्तार
मध्य प्रदेश: माननीय मुख्य न्यायाधीश श्री सूर्यकांत जी को हार्दिक धन्यवा मान्यवर आपने 16 वर्ष से लंबित एसिड अटैक केस (2009) पर जो स्पष्ट, कठोर और साहसिक टिप्पणी की वह केवल एक निर्णय नहीं, बल्कि देश की न्याय व्यवस्था के लिए जागरण का शंखनाद है। आपके शब्द क्या मज़ाक है यह हमारे कानूनी सिस्टम का? यह शर्म की बात है। 2009 का ट्रायल आज भी चल रहा है। ने पूरे देश को हिलाया है। विशेषकर M.C. Singla Case (बैंक पेंशनर्स के पेंशन अपडेशन सहित महत्वपूर्ण मुद्दे) में लंबी कानूनी देरी, वरिष्ठ नागरिकों की आयु, और जीवन की अनिश्चितता— ustice delayed is justice denied यह केवल वाक्य नहीं, लाखों भारतीयों की प्रतिदिन की पीड़ा है। एसिड अटैक मामले में 16 वर्ष बैंक पेंशनर्स को वर्षों से अपडेशन लंबित सिविल मामलों में 10–20 वर् भूमि विवादों में पीढ़ियाँ बीत जाती हैं क्रिमिनल ट्रायल दशकों तक ह स्थिति राष्ट्र के न्याय – विश्वास – शासन तीनों के लिए खतरा है। आवश्यक न्यायिक सुधार (Practical & Immediate) फास्ट-ट्रैक और स्पेशल बेंच सिस्टम एसिड अटैक, महिलाओं पर अपराध, वरिष्ठ नागरिक, पेंशन, मेडिकल मामलों को अलग ट्रैक पर सुनवाई। समय सीमा आधारित ट्रायल। राष्ट्रीय स्तर पर “लंबित मामलों की समीक्षा आयोग सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में एक स्थायी आयोग: देशभर के क्रिटिकल मामलों की मॉनिटरिंग देरी के कारणों का विश्लेषण हर 6 महीने में रिपोर्ट ट्रायल कोर्ट को समय सीमा वाला आदेश जैसा कि CJI ने एसिड अटैक केस में कहा अब समय है कि हर गंभीर केस के लिए स्पष्ट डेडलाइन तय हो। वरिष्ठ नागरिकों के मामलों को प्राथमिकता बैंक पेंशनर्स जैसा वर्ग न्याय की प्रतीक्षा में प्रतिदिन जीवन खो रहा है। 5. पुलिस-प्रॉसिक्यूशन सुधार 85% देरी चार मूल कारणों से होती है— जांच में देरी चार्जशीट गलत गवाहों की सुरक्षा नहीं सरकारी पक्ष की अनुपस्थिति 4. प्रेरक लेख – “न्याय में देरी, राष्ट्र की आत्मा पर चोट” न्याय सिर्फ अदालत में दिया गया आदेश नहीं होता— जब कोई एसिड अटैक पीड़िता 16 साल तक न्याय की प्रतीक्षा करती है, तो यह देरी केवल कानूनी गलती नहीं, न्याय में देरी— पीड़ित का साहस खत्म कर देती है समाज का विश्वास खो देती है अपराधियों का मनोबल बढ़ा देती है संविधान की आत्मा को घायल करती है भारत को “तेज गति वाला न्याय तंत्र” देना और इस परिवर्तन की शुरुआत 5. समापन निवेदन मान्यवर, आपका नेतृत्व, संवेदनशीलता और न्याय के प्रति समर्पण हम आपका हार्दिक धन्यवाद करते हुए एसिड अटैक मामलों के साथ-साथ यह कदम लाखों वरिष्ठ नागरिकों के जीवन में
आपका यह हस्तक्षेप पीड़ितों की मानव गरिमा, न्याय की आत्मा, और संविधान की रक्षा का प्रतीक है। यह जनमानस में सुप्रीम कोर्ट की आशा और विश्वास को फिर से स्थापित करता है। इसके लिए आपका गहन आभार। निवेदन – बैंक पेंशनर्स के M.C. Singla Case में भी न्यायिक हस्तक्षेप आवश्य जैसे एसिड अटैक पीड़ितों को 16 वर्षों तक न्याय के इंतज़ार ने पीड़ित किया है, वैसे ही देशभर के लाखों बैंक पेंशनर्स पिछले वर्षों से अपने वैधानिक अधिकारों के लिए संघर्ष कर रहे हैं।
एक अत्यंत मानवीय संवेदना की माँग करती है। अतः विनम्र निवेदन है कि इस मामले में सुप्रीम कोर्ट मानवीय आधार पर शीघ्र सुनवाई / प्राथमिकता हस्तक्षेप कर उचित दिशा-निर्देश जारी करे। क्योंकि बैंक पेंशनर्स 65–85 वर्ष की आयु के वरिष्ठ नागरिक हैं अनेक बीमारियों से जूझ रहे हैं सामाजिक सुरक्षा पूरी तरह पेंशन पर निर्भर है न्याय में देरी = उनके लिए जीवन भर का नुकसान जिस प्रकार आपने लंबित क्रिमिनल ट्रायल पर देश का ध्यान आकर्षित किया, उसी प्रकार बैंक पेंशनर्स भी आपका स्नेह और मार्गदर्शन चाहते हैं। न्यायिक सुधार एवं न्याय में देरी पर विस्तृत नोट न्याय में देरी – भारत का सबसे बड़ा अनसुलझा संकट न्यायालयों में लंबित मुकदमे केवल संख्या नहीं हैं वे लाखों टूटे हुए जीवन, पीड़ित परिवार और अधूरे सपने हैं।
उन्हें “अत्यावश्यक” श्रेणी में लिया जाए।
इन पर कठोर जवाबदेही अनिवार्य है।
न्याय वह विश्वास है,
जो नागरिक अपने राष्ट्र से रखता है।
या कोई 75 वर्षीय बैंक पेंशनर अपने वैधानिक अधिकार के लिए अदालतों के चक्कर लगाता है—
मानवता के खिलाफ अपराध है।
21वीं सदी का सबसे बड़ा सुधार है।
आपने—साहसिक टिप्पणी के साथ—पहले ही कर दी है।
देश को एक नई दिशा दे रहा है।
विनम्र निवेदन करते हैं कि—
बैंक पेंशनर्स के M.C. Singla Case को भी
शीघ्र सुनवाई व विशेष संवेदनशीलता प्रदान की जाए।
नई रोशनी और सम्मान वापस ला सकता है।
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