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मध्य प्रदेश: भ्रष्ट व्यवस्था के खिलाफ जनता ही अंतिम न्याय का स्तंभ कमल पाटनी
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संक्षेप
मध्य प्रदेश: संपूर्ण शासकीय व्यवस्था की जवाबदेही तय करने की मांग जब प्रशासन, न्याय और कानून सब मौन हैं, तो जनता ही अंतिम न्याय का स्रोत है देश में आज जिस स्थिति में प्रशासनिक तंत्र,
विस्तार
मध्य प्रदेश: संपूर्ण शासकीय व्यवस्था की जवाबदेही तय करने की मांग जब प्रशासन, न्याय और कानून सब मौन हैं, तो जनता ही अंतिम न्याय का स्रोत है देश में आज जिस स्थिति में प्रशासनिक तंत्र, न्यायालयीन व्यवस्था, और चुनाव आयोग जैसे संवैधानिक संस्थान कार्य कर रहे हैं, वह जनता के विश्वास पर गहरा आघात है। हर स्तर पर देरी, बहानेबाज़ी, विवेकाधीन भ्रष्टाचार और जानबूझकर की जाने वाली अन्यायपूर्ण कार्यवाही ने यह सिद्ध कर दिया है कि “सिस्टम अब जनता के विरुद्ध खड़ा है। जहां प्रशासनिक अधिकारी जनता के आवेदन, शिकायत या आदेशों का पालन नहीं करते जहां न्यायालयों में वर्षों तक निर्णय लंबित रहते हैं जहां चुनाव आयोग राजनीतिक अवसरवाद को रोकने में विफल है वहां यह मानना कठिन नहीं कि “शासन-प्रशासन अब कानून नहीं, मनमानी से चल रहा है। ऐसी स्थिति में जनता का यह संवैधानिक अधिकार और नैतिक दायित्व बनता है कि वह अन्याय के विरुद्ध आवाज उठाए भ्रष्टाचार, देरी, और निर्णय-विरोधी नीति के खिलाफ आंदोलन करे और यह घोषित करे कि “शासन की जवाबदेही जनता से छिन नहीं सकती। इसलिए, मांग की जाती है, प्रशासनिक कार्यों में समयसीमा और दंडात्मक प्रावधान को कानूनी रूप दिया जाए। न्यायालयों में लंबित मामलों की निगरानी के लिए “लोकन्याय प्रकोष्ठ बने। चुनाव आयोग यह सुनिश्चित करे कि दल-बदल, अवसरवादी गठबंधन, और चुनाव पूर्व-पश्चात सत्ता सौदे पूरी तरह निषिद्ध हों। प्रत्येक नागरिक को “लोक अभियोक्ता” के रूप में भ्रष्टाचार और निष्क्रियता के विरुद्ध FIR व याचिका का अधिकार दिया जाए। जन-जागरण लेख जब व्यवस्था ही अपराधी बन जाए तब जनता ही न्याय का अंतिम स्तंभ है आज भारत में सबसे बड़ा संकट भ्रष्ट व्यक्ति नहीं, बल्कि भ्रष्ट व्यवस्था है। कानून जनता की रक्षा के लिए बने थे, अब वही जनता से दूर हो गए हैं।न्याय की देरी, प्रशासन की मनमानी और चुनाव आयोग की निष्क्रियता ने लोकतंत्र की आत्मा को खोखला कर दिया है।
जब अधिकारी जनता को उत्तर देने से बचें, जब अदालतें जनहित के मामलों को वर्षों तक लटकाए रखें, जब चुनाव आयोग दलों की खरीद-फरोख्त पर मौन रहे, तो यह माना जाएगा कि “अपराध अब व्यक्ति नहीं, पूरी प्रणाली कर रही है। अब यह जनता का ही कर्तव्य है कि अपने अधिकारों की रक्षा के लिए सड़कों पर भी आवाज उठाए,
कानून में सुधार की मांग करे और यह याद रखे कि “लोकतंत्र जनता से चलता है, अधिकारियों से नहीं।