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मध्य प्रदेश: राणापुर नगर का सच काम सिर्फ कागजों में, सड़क‑नालियाँ व सुविधाएँ जर्जर
- Photo by : socila media
संक्षेप
मध्य प्रदेश: राणापुर नगर की हालत अब सिर्फ खराब नहीं… शर्मनाक हो चुकी है। जबकि अधिकारी रोज़ चैन की नींद सो रहे हैं, जनता उसी गंदे पानी, उन्हीं गड्ढों और उसी अव्यवस्था से जूझती रहती है।
विस्तार
मध्य प्रदेश: राणापुर नगर की हालत अब सिर्फ खराब नहीं… शर्मनाक हो चुकी है। जबकि अधिकारी रोज़ चैन की नींद सो रहे हैं, जनता उसी गंदे पानी, उन्हीं गड्ढों और उसी अव्यवस्था से जूझती रहती है। टेंडर पास हैं, योजनाएँ पास हैं, आश्वासन पास हैं — पर काम? ज़ीरो। नगर का हर कोना लगता है मानो प्रशासन को मुंह चिढ़ाते हुए कह रहा हो कि “यहाँ जिम्मेदारी मर चुकी है। कालिका माता मंदिर रोड—नाला सड़क पर, लेकिन प्रशासन अंधा छायण रोड पर नाली का पानी सड़क पर बह रहा है… और यह दृश्य कोई नई घटना नहीं। नर्सिंग कॉलेज, कन्या हॉस्टल और बच्चों के स्कूल के ठीक पास गंदगी के ढेर, बदबू और दूषित पानी से लोग रोज़ जंग लड़ रहे हैं। तेज वाहन गंदगी उड़ाते हैं, घरों-दुकानों तक छिट्टे पड़ते हैं, लेकिन प्रशासन की सफाई सिर्फ कागजों में चलती है। सवाल साफ है क्या बच्चों की सुरक्षा भी अब नगर परिषद की प्राथमिकता नहीं रही? सुभाष मार्ग—तीन साल से जनता मूर्ख बन रही है:
टेंडर तीन साल पहले पास हो चुका है। नगरवासियों ने आवेदन दिए दो बार नहीं, कई बार।
आंदोलन किया। ज्ञापन दिया, लेकिन जिम्मेदारों ने सिर्फ तारीखें बदलकर बहाने दिए नवरात्रि के बाद… दिवाली के बाद… अगली बार…” तीन साल बीत गए, पर सड़क आज भी गड्ढों में दबी है। दुर्घटनाएँ रोज़ होती हैं, बाइक सवार गिरते हैं, बुजुर्ग चोटिल होते हैं, पर नगर परिषद् का रवैया बिल्कुल लापरवाही का प्रतीक बना हुआ है। सबसे बड़ा सवाल है कि टेंडर पास होकर भी काम क्यों नहीं हुआ? पैसा कहाँ अटका है और कौन रोक रहा है? आवारा पशुओं का कब्जा—नगर परिषद् की असलियत सड़क पर:
कागजों और बैठकों में नगर परिषद् बड़ी कार्रवाई दिखाती है। जमीन पर बेल, सांड और गायें सड़कों पर आज़ादी से विचरते हुए दिखते हैं। ये पशु ट्रैफिक रोकते हैं, दुर्घटनाएँ करवाते हैं, पर अधिकारी सिर्फ “चालान वसूली” का ढोल पीटते हैं।
गोशाला में नहीं भेजा जाता क्यों? क्या इसलिए कि कार्रवाई सिर्फ फाइलों में पूरी हो जाती है? बस स्टैंड—कचरे की ट्राली पर गायें, और अधिकारी गायब बस स्टैंड पर जर्जर ट्राली महीनों से कचरे का पहाड़ बनी हुई है।गायें कचरा खाती हैं, गंदगी फैलती है, बीमारी फैलने का खतरा बढ़ता है, लेकिन नगर परिषद को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। गौसेवक भी इस दृश्य पर खामोश हैं — शायद तस्वीरें लेने में व्यस्त हैं, सेवा करने में नहीं।
बस स्टैंड मार्ग—पुल का सपना ‘जुमला’ बन चुका है। सैकड़ों वाहन हर दिन कच्चे रास्ते से गुजरने मजबूर हैं। पुल बनने का सपना वर्षों से अधूरा पड़ा है। मुद्दा उठता है, नेता आश्वासन देते हैं और फिर वही कहानी… काम ठप। शहर का मुख्य द्वार आज भी कीचड़, धूल और कच्चे रास्ते में दम तोड़ रहा है। तालाब—लाखों बहा दिए, पानी आज भी गायब तालाब में पानी नहीं, सिर्फ जलकुंभी का साम्राज्य है। हर साल सौंदर्यीकरण के नाम पर लाखों खर्च हो जाते हैं, पर तालाब की हालत जस की तस, यह सीधा संकेत है कि काम कम और बिल ज्यादा तैयार किए गए हैं। जिम्मेदारों के बयान—बहाने ही बहाने सीएमओ साहब सिर्फ “दिखवा लेता हूँ”, “ठीक करवा दूँगा”, “जल्दी हो जाएगा” जैसे बयान देते हैं। हर समस्या पर एक ही जवाब करवा देंगे, देख लेंगे, बात कर लेंगे। लेकिन काम? कहीं दिखाई नहीं देता। नगर परिषद अध्यक्ष से भी बात की गई तो उन्हें समस्त समस्याओं को लेकर बताया कि आपके द्वारा बताई गई समस्या से में अवगत हु दिखावटी हु और जल्द समाधान करवाती हु ।
जनता की पुकार—अब बस, काम चाहिए दिलीप नलवाया और दीपमला नलवाया सहित नगरवासी चार बार नगर परिषद पहुँच चुके हैं। गड्ढों की वजह से रोज़ दुर्घटनाएँ, रोज़ खतरा, रोज़ परेशानी, लेकिन तीन साल के बाद भी सड़क नहीं बनना प्रशासन की सबसे बड़ी विफलता है। अंत में सिर्फ एक सवाल— नगर परिषद चला कौन रहा है? कागजों में विकास, ज़मीन पर अव्यवस्था। फाइलों में कार्यवाही, सड़क पर गंदगी। कथनी में सफाई, हकीकत में बदबू। नगर में आज सवाल सिर्फ एक है क्या जनता सिर्फ आश्वासन खाने के लिए छोड़ी गई है, या कभी काम भी होगा?
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