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राजस्थान के झलवाड़ा में आयोजित हुई श्रीमद् भागवत् कथा, बताया भगवान के मानव शरीर धारण करने का रहस्य 

श्रीमद् भागवत् कथा

श्रीमद् भागवत् कथा - Photo by : NCR Samachar

राजस्थान   Published by: Kanhaiyalal , Date: 23/01/2023 12:13:03 pm Share:
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  • 23/01/2023 12:13:03 pm
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संक्षेप

राजस्थान के झलवाड़ा सनखेडी गाँव में चल रही श्रीमद् भागवत् कथा के तीसरे दिन की कथा में कथा वाचक संत बालयोगी महाराज ने बताया कि, मानव शरीर पाकर भी भगवत प्राप्ति नहीं कर सका।

विस्तार

राजस्थान के झलवाड़ा सनखेडी गाँव में चल रही श्रीमद् भागवत् कथा के तीसरे दिन की कथा में कथा वाचक संत बालयोगी महाराज ने बताया कि, मानव शरीर पाकर भी भगवत प्राप्ति नहीं कर सका। वो आत्महत्या कर रहा है, मानव शरीर प्राप्त करने का एक ही फल हे सब काम छोडकर राम भजन करना चाहिए तुलसीदास जी कहते है देह दरे का यह फल भाई, भजीये राम सब काम बिहाई। 

भगवान राम ने रामायण में जोडने का काम किया है। सबसे पहने राम ने वशिष्ठ, विश्वामित्र को जोडा है। दुसरा राजा जनक, दशरथ को जोडा इसके बाद रामसेतु का निर्माण कर के लंका को भारत से जोडा है। इसलिए हमको भी एक दुसरे को जोडना चाहिए है। बताया कि एक टेलर कपडा काटने वाली केंची को पैरो में डाल देता है पर कपडा जोडने वाली सुंई को अपनी पगडी में रखता है। 
 
बताया जो भगवान को नहीं मानता है, जो नास्तिक है, उसको कभी खुश करने का प्रयास मत करना क्योंकि जिस भगवान ने कंचन जैसी काया दी है उस भगवान को नास्तिक नहीं मानता है, आप भगवान से जादा तो नास्तिक को नहीं दे सकते है l
पहले गलती करने पर बाल बच्चों को घर, परिवार यंहा तक की गाँव वाले भी डांट लगा देते है पर आज के समय में माता पिता के अलावा कोई हमारी संतान को डांट नही सकता हैं कोई डांटता भी हे तो माता पिता को बुरा लगता है। इसलिए आज संतान बिगड़ रही है। 

बताया कि अपनी संतान के लिए माल छोडकर जाओ या मत जाओ पर संतान के हाथो में किसी गुरु के नाम की माला जरूर छोडकर जाओ। आज के समय संतान माता पिता के थोडे से डांट देने से जहर खा लेते है, पंखे से लटक जाते है, यह सब सतसंग में नही जाने की वजह से हो रहा है सतसंग में जाने वाला इंसान कभी भी आत्महत्या नही करता है। भागवत् कथा में विदुर ने मेत्रय ऋषि से कहा, गुरु वर जीव सुख पाने के लिए कर्म करता है पर जीव को दुख क्यों मिलता है। इसके उत्तर में मेत्रय जी ने बताया कि, जीव सुख को अपने बाहर ढुंडता है जबकी सुख जीव के अंदर ही है इसलिए जीव को दुख मिलता है। 
कथा के बीच गाये भजन जोत से जोत जलाते चलो, प्रेम की गंगा बहाते चलो व सत्यम शिवम सुंदरम पर श्रोता मंत्रमुग्ध हो गए।