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उत्तर प्रदेश: दहेज एक अभिशाप चैनपाल प्रधान ने उठाई सामाजिक सुधार की आवाज

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उत्तर प्रदेश  Published by: Narender (UP) , Date: 07/10/2025 04:06:29 pm Share:
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  • 07/10/2025 04:06:29 pm
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संक्षेप

उत्तर प्रदेश: समाज में दहेज प्रथा एक गंभीर सामाजिक कुरीति के रूप में जड़ें जमा चुकी है। यह परंपरा न केवल परिवारों को आर्थिक रूप से तोड़ती है, बल्कि इंसानियत और रिश्तों की पवित्रता को

विस्तार

उत्तर प्रदेश: समाज में दहेज प्रथा एक गंभीर सामाजिक कुरीति के रूप में जड़ें जमा चुकी है। यह परंपरा न केवल परिवारों को आर्थिक रूप से तोड़ती है, बल्कि इंसानियत और रिश्तों की पवित्रता को भी कलंकित करती है। समाज के प्रबुद्धजन, बुद्धिजीवी और समाजसेवी लगातार जन-जागरण अभियानों के माध्यम से लोगों को जागरूक करने का प्रयास कर रहे हैं कि बेटा और बेटी में समानता, शिक्षा और आत्मनिर्भरता ही एक स्वस्थ समाज की नींव है। शादी जैसे पवित्र संस्कार को सीमित और सादगीपूर्ण कार्यक्रम के रूप में संपन्न किया जाना चाहिए। चैनपाल प्रधान का कहना है कि दहेज लेना और देना दोनों ही घोर कुरीति हैं, जो मानव जीवन में अशांति और विघटन का कारण बनती हैं। हर बेटी का सपना होता है कि उसे एक अच्छा परिवार मिले जहाँ उसे प्यार, सम्मान और अपनापन मिले। परंतु आज भी समाज के कई वर्गों में दहेज की मांग के कारण बेटियों को उत्पीड़न, हिंसा और मानसिक यातना झेलनी पड़ती है।

दहेज की डिमांड से दोनों परिवारों में तनाव और अशांति का वातावरण बन जाता है। कई बार यह स्थिति इतनी गंभीर हो जाती है कि बेटियों को आत्महत्या करने या समाजिक अत्याचार झेलने तक की नौबत आ जाती है। अनेक परिवार न्याय पाने के लिए कोर्ट-कचहरी के चक्कर काटते रहते हैं। चैनपाल प्रधान का मानना है कि जब भी दहेज से जुड़ी कोई दुखद घटना घटे, तो केवल लेने वालों ही नहीं, बल्कि दहेज देने वालों पर भी कानूनी कार्रवाई होनी चाहिए। क्योंकि समाज में यह बुराई तभी खत्म होगी जब दोनों पक्षों को समान रूप से जिम्मेदार ठहराया जाएगा। अंततः, दहेज प्रथा को समाप्त करने के लिए हमें अपनी सोच, व्यवहार और परंपराओं में सुधार लाना होगा। सादगीपूर्ण विवाह, बेटियों की शिक्षा और आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देना ही इस कुरीति से मुक्ति का सच्चा मार्ग है।