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बिहार: बिहार मे मतदान मे क्यों आई गिरावट ? भविष्य के लिए है चिंता का विषय
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संक्षेप
बिहार: बिहार मे 2004 के बाद से होने वाले मतदान मे चुनाव आयोग के एक से बढ़ कर एक रणनीति तैयार हुए जिससे मतदान का प्रतिशत बढ़ता गया, काफ़ी कुशल योग्य आई।
विस्तार
बिहार: बिहार मे 2004 के बाद से होने वाले मतदान मे चुनाव आयोग के एक से बढ़ कर एक रणनीति तैयार हुए जिससे मतदान का प्रतिशत बढ़ता गया, काफ़ी कुशल योग्य आई। पिएस अधिकारी, एवं आई एस अधिकारी द्वारा काफ़ी योग्य उत्तम कारगर कदम उठाये गए। इलाकों मे वास्तविक स्वरूप मे जागरूकता अभियान चलाया गया मतदान मे लोगो की रूचि बढ़ने लगा। एक दौर था ज़ब मतदान का नाम सुनते लोग घरो मे कैद हो जाते थे। बिहार मे मतदान का वास्तविक स्वरूप दिखा, कई राज्य सबक लिए, भारत मे होने वाला लोकसभा एवं बिधान सभा समेत अन्य मतदान को कैसे बेहतरीन ढंग से शांति पूर्ण भयमुक्त निष्पक्ष स्वच्छ कराये जाये इस और कारगर ठोस रणनीति बनाय गय एवं सफलता पूर्वक मतदान बेहतरीन ढंग से शांति पूर्ण भयमुक्त निष्पक्ष स्वच्छ कराये जाने लगा, मतदान की प्रतिशत काफ़ी बढ़ा, लोगो मे चुनाव आयोग के प्रति प्रशासन के प्रति विश्वास बढ़ गया। कोई किसी को धमकता तो नहीं है, कोई किसी को प्रलोभन तो नहीं देता है, कोई किसी को गुमराह तो नहीं कर रहा है, कोई किसी को मतदान से रोक तो नहीं रहा है, हर हाल मे मतदाता को मतदान केंद्र पर लाये जाने एवं उनकी हर सुबिधा का ध्यान अधिकारी द्वारा रखा जाने लगा। हर इलाकों मे गस्ती बढ़ाये गए, पुख्ता फ़ोर्स तैनात किया गया, कमजोर सुरक्षा कर्मी एवं बृद्ध मोटापन वाले सुरक्षा कर्मी को हटाए गए, चुस्त दुरुस्त सुरक्षा बल लगाए गए। नतीजा यह हुआ की कई इलाकों मे लक्छ से अधिक मतदान हो गए, मगर अब इस वर्ष इस मतदान मे मतदान की संख्या बढ़ने के बजाए क्यों घटने लगा है यह गंभीर बिषय बिहार के भविष्य के लिए एवं कई अधिकारी के एवं कई पदाधिकारी के भविष्य के लिए चिंता का मुख्य बिषय बन गया है.की आखिर कहा चूक हो रहा है जिससे मतदान का प्रतिशत बढ़ने के बजाय घट रहे है। बिहार :भारत मे होने वाले प्रथम चरण के मतदान मे बिहार मे काफ़ी कम मतदान हुए, जिससे कई अधिकारी चिंतित है, अब तो पटना, मुजफ्फरपुर, मोतिहारी, किसनगंज, पूर्णिया, दरभंनगा, समस्तीपुर, हाजीपुर, बांका, नालंदा,मुंगेर, कटिहार, बेगूसराय, बक्सर, गोपालगंज, सीतामढ़ी, छपरा, सुपौल, अरवल, भागलपुर, सिवान, लखिसराय, समेत अन्य लोकसभा छेत्र मे कैसे मतदान का प्रतिशत बढ़े वहा प्रतिशत घटे नहीं इस पर चुनाव आयोग एवं कई उच्च अधिकारी अभियान तेज कर दिए है, इसका असर पटना मे दिखने लगा है, खुद डीएम, एसएसपी, आयुक्त अभियान तेज करते हुए संकल्प किय एवं संकल्प कराये है की मतदान को काफ़ी बढ़ाना है। एवं कोई मतदाता नहीं छूटे हर मतदाता को मतदान केंद्र तक मतदान कराना है, इस दिशा मे अधिकारी ने अभियान तेज कर दिए है, मगर चिंता की बिषय है की बिहार लोकसभा के मतदान मे मतदान का संख्या बढ़ने के बजाय घटना दुर्भाग्य पूर्ण है। इतना जागरूकता अभियान चलाना बेकार साबित हुआ। जनता सब समझती है। जनता के बिच का अविश्वास खत्म करना होगा। सुरक्षा का भरोसा उठ रहा है। अधिकारी को स्वयं इलाकों मे जाना होगा। अधिकांश थाने की पुलिस एवं अधिकांश प्रखंड अंचल के पदाधिकारी पर जनता का उनके दलाल एवं कुछ गैर जिम्मेदारी वाले लोगो से दोस्ती के कारण अविश्वास फ़ैल रहा है। 2004 के बाद मतदान के लिए कितना मेहनत किए गए। लगातार अभियान चला, तब जनता मे जागरूकता आया उनका भय खत्म हुए ओ निर्भीक निश्चित होकर काफ़ी संख्या मे मतदान करने लगे, आखिर क्या हुआ की मतदान की संख्या कम गया, पहले से ज़्यदा जागरूकता अभियान चल रहा है। ज्यादा करवाई हो रहे है, फिर भी मतदान कम होना स्वयं सत्य जाहिर करता है की लोग संतुष्ट नहीं है, लोगो मे उमंग उत्साह नहीं है। पेंटिंग, नाच गाना से लोग बिश्वास नहीं करते है,यह भी कराये जाये, इससे भी जागरूकता किया जाये, मगर लोगो को अधिकारी पर विश्वास होता है। लोग यह देखते समझते है की उनको मुश्किल मे मुसीबत मे कष्ट मे निस्वार्थ होकर कौन बचाता है। ईमानदार अधिकारी, ईमानदार पदाधिकारी पर लोग विश्वास करते है, जनता मे विश्वास कम रहा है, मौसम तो बंगाल त्रिपुरा मे भी वही था, वहा मतदान बढ़ता गया है, बिहार मे घट रहा है, मतलब साफ है लोगो मे विश्वास नहीं है मतदान करने की रूचि नहीं है, ग्रामीण इलाकों एवं शहर के इलाकों का भी मतदान संख्या मे अंतर है, इस पर समझते हुए धरातल पर उतरना होगा, यह उचित नहीं है यह अनुचित एवं दुर्भाग्य पूर्ण है, लोगो को मतदान के लिए प्रेरित करना होगा उनको जागृत करना होगा उनमे विश्वास जगाना होगा।
रक्त रंजीत हिंसा से भरा हुआ खून से सना हुआ मतदान होता था, बम गोली, लाठी डंडा का बरसात होता था, लाश बिछ जाता था, लोग मतदान करने से कतराते थे। मतदाता घर पर रहते थे। उनका मतदान दबँग कर देते थे। मतदाता का इक्छा को कुचल दिए जाते थे। जो मतदान करना चाहते थे उनको मौत मिलता था।
काफ़ी घटनाये होते थे, चुनावी रंजिश मे बड़े बड़े घटना होते थे, मगर चुनाव आयोग ने इसको गंभीरता से लिए, प्रशासन के उच्च अधिकारियो ने इसको सुधारा, एवं काफ़ी सुधार हुआ। लोगो को प्रेरित किया गया, एक दौर मे के जे राव आये, कई रणनीति बने।
स्थानीय एस पि एसएसपी डीएम, आई जी, स्वयं इलाकों मे सीधा लोगो से सम्पर्क करके उनकी इक्छा उनका बिचार उनकी दिक्कत समझने लगे, यहां तक की कई नंबर जारी किया गया। रात और दिन अधिकारी इलाकों मे कैम्प करके यह जानने लगे की मतदाता एवं मतदान को कोई खतरा तो नहीं है।
उनके असंतोष को दूर करना होगा,अस्सी प्रतिशत से नब्बे प्रतिशत की लक्छ लेकर चलना होगा, मतदान मे गिरावट आना कार्य प्रणाली चलाये जा रहे अभियान विश्वास पर प्रश्न खड़ा करता है, प्रथम चरण मे पूर्व के उससे पूर्व के उससे पूर्व के आकलन के अनुसार कमियों को दूर कर के और बेहतरीन ढंग से मतदान के लिए खुद वरिय अधिकारी को जनता के बिच जाकर उनको समझना चाहिए, उनकी भावना को समझना चाहिए, जनता sp, एसएसपी, डीएम, आई जी, DGP, ADGP, चुनाव आयोग के अधिकारी पर विश्वास करती है, जो अब उनसे दूर होते जा रह जा रहे है।
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