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मध्य प्रदेश: आखिरकार पेंशनर्स का अपमान कब तक?
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संक्षेप
मध्य प्रदेश: भारत के बैंक पेंशनर्स, जिन्होंने अपने जीवन की सबसे सशक्त उम्र देश की वित्तीय व्यवस्था को संभालने में लगा दी, आज अधिकारों के लिए दर-दर भटक रहे हैं। वे लोग जिन्होंने जन
विस्तार
मध्य प्रदेश: भारत के बैंक पेंशनर्स, जिन्होंने अपने जीवन की सबसे सशक्त उम्र देश की वित्तीय व्यवस्था को संभालने में लगा दी, आज अधिकारों के लिए दर-दर भटक रहे हैं। वे लोग जिन्होंने जनता की गाढ़ी कमाई की सुरक्षा की, बैंकों की शाखाओं को खड़ा किया, और राष्ट्र की अर्थव्यवस्था में योगदान दिया — आज वही बुज़ुर्ग पेंशन अद्यतन और जीवन-यापन की न्यूनतम गरिमा से भी वंचित हैं। विडम्बना यह है कि यूनियन और महासंघों के बड़े-बड़े नेता मंचों पर “संघर्ष” और “लड़ाई” की बातें तो करते हैं, पर पर्दे के पीछे समझौते और स्वार्थ की राजनीति पेंशनर्स के हक़ को निगल जाती है। जो मशहूर फिल्म दीवार की याद दिला देती है कि कैसे श्रमिकों के हितों व लाभ का मैनेजमेंट के साथ सौदा किया गया था। व वह मनहूस निशानी लिए अमिताभ बच्चन जी ने फिल्म में पूरा जीवन शर्मिंदगी व नाराजी के साथ जीया था। U F B U के श्री वेंकटचलम और A I B R F जैसी संगठनों के श्री एस सी जैन जैसे नेताओं से अपेक्षा थी कि वे अपने बुज़ुर्ग साथियों की ढाल बनेंगे, लेकिन ज़मीनी सच्चाई इसके उलट है। ऐसे नेता आज अपने साथियों से बात तक करने में कतरा रहे है। व बड़ी बेशर्मी के साथ अपने पदों पर जमे हुए है। मुख्य सवाल 1. जब सुप्रीम कोर्ट ने कई बार “पेंशन अद्यतन” को कर्मचारी का अधिकार माना है, तो बैंक पेंशनर्स के साथ भेदभाव क्यों? 2. जब सरकारी पेंशनर्स को नियमित अद्यतन का लाभ मिलता है, तो बैंक पेंशनर्स को इससे वंचित क्यों रखा गया? 3. क्या यूनियन के नेताओं का काम केवल पद पर बने रहना है या अपने सदस्यों के लिए ठोस परिणाम लाना पेंशनर्स की आवाज़ हमने बैंकिंग को जीवन दिया, अब वही बैंक हमें जीवन-यापन की गरिमा क्यों नहीं देता?” जब लोकतंत्र में हर वर्ग को समान अवसर और सम्मान का अधिकार है, तो क्या बुज़ुर्ग बैंक पेंशनर्स के साथ यह अन्याय संवैधानिक मूल्यों के विपरीत नहीं? निष्कर्ष और आह्वान यह केवल बैंक पेंशनर्स की समस्या नहीं, यह पूरे समाज की संवेदनशीलता की परीक्षा है। यदि हम अपने बुज़ुर्गों के हक़ नहीं दिला सकते, तो फिर “कल्याणकारी राष्ट्र ” का दावा खोखला है। रकार को चाहिए 1. बैंक पेंशनर्स के पेंशन अद्यतन पर तत्काल ठोस निर्णय ले। यूनियनों और महासंघों की जवाबदेही तय करे। एवं भ्रष्ट नेताओं वो I B A के गैर जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ आपराधिक षडयंत्र रचने के लिए प्रकरण कायम कर कठोर दंड दिया जाए सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देशों का पालन कर पेंशनर्स को न्याय दिलाए। शन हमारा हक़ है, उपकार नहीं। यह संदेश हर बैंक पेंशनर, हर जनप्रतिनिधि और हर जागरूक नागरिक तक पहुँचना चाहिए। कमल पाटनी अभिभाषक, सामाजिक व R T I कार्यकर्ता,जन हित चिंतक 03 कॉलेज रोड रतलाम
नेता मंच पर वादे करते हैं, हकीकत में समझौते कर जाते हैं।” यह लड़ाई सिर्फ पैसों की नहीं, आत्मसम्मान की है।” सरकार और न्यायपालिका की ओर सवाल
क्या यह उचित है कि जिन्होंने 30-35 साल सेवा दी, वे अब जीवन की संध्या में न्यूनतम पेंशन की भीख माँगने को मजबूर हों?