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आंध्र प्रदेश: कांग्रेस आलाकमान का रेवंत रेड्डी को कमजोर करने का तरीका पार्टी की आंतरिक समस्याओं का समाधान या नुकसान ?
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विस्तार
आंध्र प्रदेश: कांग्रेस पार्टी को मजबूत करने के बजाय, आलाकमान ने कई राज्यों में अपने ही नेताओं को कमजोर करने वाली रणनीतियों को अपनाया है। खासतौर पर तेलंगाना में, जहां रेवंत रेड्डी के नेतृत्व में कांग्रेस ने सत्ता में वापसी की थी, अब उन्हें पार्टी के भीतर ही संघर्षों का सामना करना पड़ रहा है। कांग्रेस पार्टी फिलहाल हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक और तेलंगाना में सत्ता में है, जबकि अन्य राज्यों में उसकी स्थिति कमजोर दिखाई देती है। हरियाणा और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में कांग्रेस को अपनी उम्मीद के अनुसार सफलता नहीं मिल पाई है, और दिल्ली व बिहार में भी पार्टी की स्थिति संदिग्ध है। ऐसे में पार्टी को अपनी ताकत सत्ताधारी राज्यों में दिखानी चाहिए, लेकिन आलाकमान के कदम इसे उलटते हुए नजर आ रहे हैं। तेलंगाना में रेवंत रेड्डी ने कड़ी मेहनत कर पार्टी को सत्ता में वापस लाया। उनका नेतृत्व कांग्रेस को सही दिशा में ले जाने का कारण बना, लेकिन अब आलाकमान ने उन्हें जो सम्मान देने की बजाय, उनके निर्णय लेने की स्वतंत्रता को छीन लिया है। वे छह मंत्री पदों को भरने के लिए संघर्ष कर रहे हैं, और जिन लोगों को उन्होंने चुना था, उन्हें भी जातिगत समीकरणों और पार्टी के उच्च नेतृत्व के दबावों के चलते बदलना पड़ा। रेवंत रेड्डी के नेतृत्व में कांग्रेस को न केवल राज्य में बल्कि पूरे देश में उम्मीद की एक नई किरण दिखी थी। लेकिन अब आलाकमान की कार्रवाई से उनके और राहुल गांधी के बीच की दूरियां बढ़ती जा रही हैं। पार्टी के भीतर की ये दरारें कांग्रेस के लिए दीर्घकालिक नुकसान का कारण बन सकती हैं। राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि अगर रेवंत रेड्डी को कमजोर किया गया, तो कांग्रेस पार्टी को इसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा। पार्टी को समझने की जरूरत है कि रेवंत जैसे नेता, जो कड़ी मेहनत कर पार्टी को सत्ता में लाए हैं, उनके निर्णयों का सम्मान करना और उन्हें स्वतंत्रता देना ही पार्टी के फायदे में है। अगर इस तरह की राजनीति जारी रहती है, तो नुकसान सिर्फ कांग्रेस का होगा, और रेवंत रेड्डी जैसे नेताओं के लिए राजनीति में भविष्य की कोई जगह नहीं बच पाएगी।