-
☰
उत्तर प्रदेश: बिहार में फिर चला नीतीश का मास्टरस्ट्रोक, 10 हजारिया दांव से सत्ता की वापसी पक्की
- Photo by : social media
संक्षेप
उत्तर प्रदेश: बिहार की राजनीति में कहावत है- जहां नीतीश वहां सत्ता। इस बार के नतीजे ने इस कहावत को और मजबूती दे दी।
विस्तार
उत्तर प्रदेश: बिहार की राजनीति में कहावत है- जहां नीतीश वहां सत्ता। इस बार के नतीजे ने इस कहावत को और मजबूती दे दी। दरअसल, बीते ढाई दशक से नीतीश राज्य की राजनीति की धुरी बने हुए हैं। वैसे, उनकी राजनीति की धुरी में आधी आबादी, ईबीसी-ओबीसी का मजबूत गठजोड़ और सुशासन का नारा है। साल 2005 मे छात्राओं को साइकिल देकर बाजी पलटने वाले नीतीश के इस बार 10 हजारिया दां व के आगे विपक्ष की राजनीति धारा शायी हो गई। उनके करीबी मानते हैं कि नीतीश जब कमजोर और चुप दिखें तभी समझिए कि वह किसी बड़े सियासी दांव से सबको चित करने वाले हैं। बढ़ती उम्र, गिरते स्वास्थ्य, घटती लोकप्रियता और बीते चुनाव के प्रदर्शन का हवाला देकर राजनीतिक टीकाकार उनके चला चली का बेला बता रहे थे। हालांकि चुनाव से 3 महीने पहले नीतीश के ताबड़तोड़ कई सियासी दांव ने उन्हें एक बार फिर राज्य की सियासत के आसमान पर पहुंचा दिया। चुनाव से ठीक पहले सबके लिए 125 यूनिट फ्री बिजली, सामाजिक सुरक्षा पेंशन में तीन गुना की बढ़ोतरी, जीविका दीदी और सहायिकाओं के मानदेय में वृद्धि के बाद अचानक सीएम महिला स्वरोजगार योजना के तहत 1.20 करोड़ महिलाओं के खाते में 10 हजार रूपए की सहायता ने पूरी सियासी बाजी पलट दी। पहले और दूसरे चरण में पुरुषों के मुकाबले महिलाओं के रिकॉर्ड अधिक मतदान ने नीतीश की वापसी का संदेश दे दिया था। नतीजे बताते हैं कि नीतीश कि सुशासन वाली छवि बरकरार है। उनके खिलाफ किसी वर्ग में कोई नाराजगी नहीं दिखी. बीते चुनाव में लोजपा के कारण लगे झटके से उबरते हुए जदयू ने दुगनी सीट हासिल साबित कर दिया कि महिला, अति पिछड़ा, महादलित और लव कुश वोट बैंक में नीतीश का आकर्षण बना हुआ है। लोगों के जंगलराज के प्रति कायम भय नीतीश के सुशासन बाबू के छवि को मजबूत बनाए हुए हैं। अब सकारात्मक नतीजे के बाद नीतीश के सामने अपना उत्तराधिकार तय करने के लिए पर्याप्त समय होगा। नितेश-लालू ने एक ही समय जेपी की छाया में राजनीति शुरू की थी. 1990 में नीतीश ने लालू को सीएम बनाने में योगदान दिया। हालांकि 1994 में लालू से मोहभंग होने पर उन्होंने जार्ज फर्नांडिस के साथ पहले समता पार्टी फिर शरद- जॉर्ज के साथ जदयू का गठन किया. इसके बाद भाजपा से गठबंधन कर नीतीश ने पहली बार 2005 में अल्प समय के लिए सीएम बने। हालांकि, अक्टूबर 2005 से अब तक (2014-15 में थोड़े अंतराल को छोड़कर) वह लगातार सीएम हैं। नीतीश के नाम सबसे लंबे समय तक मुख्यमंत्री बने रहने का ही नहीं, पाला बदलने का भी कीर्तिमान है. नितेश दो- दो बार भाजपा और राजद से ना ता तोड़ चुके हैं। हालांकि उन्होंने हर बार पाला बदलकर राजद व भाजपा को अपनी ताकत का एहसास कराया। 2015 मे पहली बार भाजपा से अलग राजद के साथ जब नीतीश चुनाव लड़े तो बीजेपी न सिर्फ 53 सीटों पर सिमट गई, बल्कि इसके उलट राजद ने 10 साल बाद सत्ता का स्वाद चखा। इसके 1 साल बाद फिर नीतीश ने फिर भाजपा से हाथ मिलाया. इसके बाद 2020 के चुनाव में एक बार फिर राजग की सरकार बनी. भारत का सबसे पिछड़े और बीमारू राज्यों में शुमार रहे बिहार को विकास के रास्ते पर लाने का श्रेय नीतीश को जाता है। 2005 में उनको सबसे बड़ी चुनौती बिहार को अपराध, भ्रष्टाचार व बेरोजगारी के मकर के मकड़जाल से निकालने की थी। उन्होंने जहां बुनियादी सुविधाएं विकसित कीं, वहीं कानून व्यवस्था में सुधार को प्राथमिकता बनाया. युवा पुलिस अधिकारियों को उन्होंने अपराधियों के खिलाफ कार्रवाई की खुली छूट दी. इससे उन्हें सुशासन बाबू की उपाधि मिली। नीतीश कुमार ने लड़कियों की शिक्षा को बढ़ावा दिया, उन्हें स्कूल जाने के लिए साइकिल दी। इससे दूर दराज के गांवों की लड़कियों मे भी शिक्षा का प्रसार हुआ। बाद में सरकारी नौकरियों में महिलाओं को 35 फ़ीसदी आरक्षण दिया। इससे शिक्षित बेटियों को घर के पास रोजगार मिलने लगा जाहिर है कि समाज में इससे बड़ा और सकारात्मक बदलाव आया।