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उत्तर प्रदेश: 1954 प्रयागराज कुंभ में बेकाबू हाथी से 800 मौतें
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विस्तार
उत्तर प्रदेश: प्रयागराज महाकुंभ, जो आध्यात्मिकता और संस्कृति का संगम है, जल्द ही श्रद्धालुओं के विशाल जलसे का साक्षी बनेगा। जहां एक ओर शासन-प्रशासन ने इस साल के कुंभ मेले की तैयारियों को अंतिम रूप दे दिया है, वहीं दूसरी ओर कुंभ के इतिहास में दो ऐसी घटनाएं हुईं हैं, जो आज भी लोगों के जेहन में ताजा हैं। इनमें से पहली घटना 1954 के कुंभ मेला से जुड़ी है, जो आज भी लोगों को रुलाती है। 1954 के कुंभ मेले का वह दिन 3 फरवरी था, जो मौनी अमावस्या का दिन था। इस दिन प्रयागराज के संगम तट पर एक भयंकर भगदड़ मच गई, जिसमें सैकड़ों श्रद्धालुओं की जान चली गई। घटना के समय पंडित जवाहरलाल नेहरू भी मेले में मौजूद थे। बताया जाता है कि एक हाथी के नियंत्रण से बाहर हो जाने के कारण भगदड़ का माहौल बना, जिससे कई श्रद्धालु नदी में डूब गए और कुछ कुचले गए। इस दर्दनाक हादसे में करीब 800 लोगों की मौत हो गई। इस हादसे के बाद कुंभ मेला के प्रमुख स्नान पर्वों पर वीआईपी प्रवेश पर रोक लगाने और हाथियों के प्रवेश पर पाबंदी लगाने का निर्णय लिया गया। यही कारण है कि आज भी कुंभ, महाकुंभ और अर्ध कुंभ के बड़े स्नान पर्वों के दिन वीआईपी की उपस्थिति पर पाबंदी होती है। इसी तरह की एक दुर्घटना 2013 में भी घटी थी। 2013 में भी मौनी अमावस्या के दिन प्रयागराज रेलवे स्टेशन पर भगदड़ मचने से 35 लोगों की मौत हो गई थी, जबकि दर्जनों लोग घायल हो गए थे। यह घटना प्लेटफार्म नंबर 6 के पास फुट ओवरब्रिज की सीढ़ियों पर हुई थी। उस समय रेलवे स्टेशन पर भारी भीड़ थी, क्योंकि लोग स्नान करने के बाद घर लौटने के लिए पहुंचे थे। इस हादसे के बाद रेलवे ने भीड़ प्रबंधन पर विशेष ध्यान देना शुरू किया और यात्रियों की सुरक्षा को प्राथमिकता दी। इन दोनों घटनाओं ने कुंभ मेले की व्यवस्थाओं की गंभीरता और प्रशासन की जिम्मेदारी को रेखांकित किया, और इन घटनाओं से प्रेरित होकर प्रशासन ने सुरक्षा प्रोटोकॉल में सुधार किए।
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