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उत्तर प्रदेश: सोनभद्र की पिपरी नगर पंचायत पीएम आवास योजना से वंचित, वन विभाग की जमीन बनी बाधा
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संक्षेप
उत्तर प्रदेश: ऐसी नगर पंचायत जहां रहवासियों को नहीं मिल पाती पीएम आवास.
विस्तार
उत्तर प्रदेश: ऐसी नगर पंचायत जहां रहवासियों को नहीं मिल पाती पीएम आवास. 17 नगर निगम, 200 नगर पालिका व 490 नगर पंचायत मे एक ऐसा निकाय जो ऑनलाइन आवेदन सूची से भी है बाहर सोनभद्र जिले में एक ऐसी नगर पंचायत है, जहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अति महत्वाकांक्षी योजना प्रधानमंत्री आवास लागू नहीं होती. कई वर्षों से फंसे जमीन की अड़चनों की वजह से आय, जाति, निवास प्रमाण पत्र बनवाने में लोगों को काफी परेशानी झेलनी पड़ रही है. हर गरीब लोगों को पक्की मकान मुहैया कराने के लिए शुरू की गई प्रधानमंत्री आवास योजना से यहां के वशिंदे अभी तक वंचित है. प्रधानमंत्री की पहली शर्त रिकॉर्ड सुदा जमीन की उपलब्धता है लेकिन सोनभद्र जिले के पिपरी नगर पंचायत एक ऐसी नगर पंचायत है, जहां की पूरी जमीन वन विभाग के नाम दर्ज है. इसके लिए यहां पर निवास कर रहे लोगों को जाति,आय, निवास के साथ ही सामान्य सरकारी योजनाओं के लाभ के लिए भारी मुसीबततों का सामना करना पड़ता है. पीएम आवास के लाभ से पूरी नगर पंचायत योजना विहीन हो गई है. जमीन की कुछ अड़चनें ऐसी फंसी हैं कि प्रदेश के 17 नगर निगम, 200 नगर पालिका और 490 नगर पंचायत में एकमात्र एक पिपरी नगर पंचायत ही एक ऐसा निकाय है, जिसे प्रधानमंत्री शहरी आवास के ऑनलाइन आवेदन सूची से बाहर कर दिया गया है. पिपरी नगर पंचायत की खुद अपना जमीन हो इसको लेकर काफी लंबे अरसे से कवायद तो जारी है ही, दिग्विजय सिंह के नगर पंचायत अध्यक्ष बनने के बाद इस कवायद में थोड़ी तेजी आई. यह मामला मुख्य सचिव तक पहुंचाया गया. इसके बाद तीन बार उच्चस्तर पर बैठक भी हुई. इसके बावजूद वन विभाग की धारा 4 की मामले ने पूरी कवायद पर पानी फेर दिया. अब यह मामला अभिलेख से जुड़ा प्रकरणों की सुनवाई के लिए जिले के ओबरा में स्थापित ऐडीजे के न्यायालय में लंबित है. राजस्व विभाग में रिहन्द जलाशय की निर्माण के लिए जमीन दी थी. उसके निर्माण के समय पिपरी में जो जमीन बची, उसे पर एक बड़ी आबादी बस गई। अच्छी-खासी संख्या को देखते हुए 1958 में राज्यपाल ने पिपरी को टाउनशिप एरिया का दर्जा दे दिया. लेकिन 1968 में पिपरी नगर पंचायत क्षेत्र की जमीन को लेकर वन विभाग ने धारा 4 की अधिसूचना (किसी भवन वन भूमि या बंजर भूमि को आरक्षित वन घोषित करने की प्रारंभिक प्रक्रिया) जारी कर दी. वर्ष 2022 में भाजपा की दूसरी बार सरकार बनी तो इसको लेकर उच्च स्तर पर मंथन हुआ लेकिन समस्या का कोई हल नहीं निकल पाया. नगर पंचायत अध्यक्ष दिग्विजय सिंह का कहना है कि पिछले 7 साल से इस मामले को उठाया जा रहा है, पहले इस जमीन पर नगर पंचायत की अधिसूचना जारी हुई थी. बाद में वन विभाग ने धारा 4 की अधिसूचना जारी कर दी. नगर पंचायत की जमीन न होने से वर्षों से यहां पर रह रहे लोगों को मालिकाना हक नहीं मिल पाया. इसी कारण प्रधानमंत्री आवास का लाभ नहीं मिल पा रहा है. एडीजे ओबरा की अदालत में मामला विचाराधीन है. इस मामले का जल्द समाधान हो हम पूरे प्रयास में लगे हुए हैं।