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दिल्ली: संगम विहार विधानसभा में जामा मस्जिद अलविया में तराबीह की नमाज हुई सम्पन्न
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संक्षेप
दिल्ली: संगम विहार विधानसभा में जमा मस्जिद अलविया में आज तराबीह की नमाज मुकम्मल हुई। दुआ में बड़ी तादाद में लोग मौजूद रहे। रमजान के इस वाबरकत महीने में हर शख्स इबादत, खिदमत, और इंसानियत के कामों को पूरी शिद्दत से करता है। जिस तरह रमजान में नमाजियों की तादाद मस्जिदों की तरफ दौड़ती नजर आती है, ये देख कर ही लगता है कि ये वो बरकती महीना है जिसमें एक नेकी का शबाब अल्लाह 70 नेकियों में बदल देता है।
विस्तार
दिल्ली: संगम विहार विधानसभा में जमा मस्जिद अलविया में आज तराबीह की नमाज मुकम्मल हुई। दुआ में बड़ी तादाद में लोग मौजूद रहे। रमजान के इस वाबरकत महीने में हर शख्स इबादत, खिदमत, और इंसानियत के कामों को पूरी शिद्दत से करता है। जिस तरह रमजान में नमाजियों की तादाद मस्जिदों की तरफ दौड़ती नजर आती है, ये देख कर ही लगता है कि ये वो बरकती महीना है जिसमें एक नेकी का शबाब अल्लाह 70 नेकियों में बदल देता है। मस्जिदों में पांच वक्त की नमाज के बाद तरावीह की नमाज, जो कि रात को इशा की नमाज के बाद हाफिज साहब इस तराबीह की नमाज में कुरान सुनाते हैं, रमजान के मुकद्दस महीने में ही अल्लाह ने कुरआन उतारा। इसी लिए 30 रमजान में तरावीह में कुरआन के 30 पारे, जो कि रोजाना एक पारा हाफिज साहब सुनाते हैं, लेकिन आजकल कुछ जगहों पर तराबीह 15 रमजान, 10 रमजान या कहीं 20 रमजान में भी कुरआन तराबीह में सुना जा रहा है। कम दिनों में कुरान सुनने के पीछे वजह यही होती है कि जो लोग कारोबारी नौकरी या किसी मशरूफियत की वजह से पूरी तीस दिन की तराबीह अगर नहीं पढ़ सकते, तो कम दिनों में कुरआन सुनना भी ना सुनने से बेहतर है। कि 15 दिन में ही सही, कम से कम कुरआन सुन लिया जाए। इससे एक बड़ा फायदा ये भी रहता है कि हाफिज ए कुरआन, जिनको मस्जिदें नहीं मिल पाती हैं, उनको भी कुरआन सुनाने का मौका मिल जाता है। कुरआन को जो लोग बहुत मेहनत से हिफाज़त से अपने सीनों में रखे हुए हैं, उनको कुरान हर साल रमजानों में सुनाना बहुत जरूरी होता है, तभी वो तरीके से याद रह पाता है। वरना अगर एक साल कोई हाफिज तराबीह में कुरआन ना सुनाए, तो अगली सालों के लिए भी उस हाफिज की हिम्मत कुरआन सुनाने की मुश्किल से ही बच पाती है। इसी लिए तराबीह सुनाने वाले हाफिज को कड़ी मेहनत करनी होती है, तब कहीं जाकर एक-एक हरूफ, एक-एक नुक्ते और रकअत के साथ सजदे और रुकू पर फोकस करते हुए 20 रकअत तराबीह पढ़ा पाते हैं। लोगों को इस बात का एहसास होता है कि हाफिज की कितनी अहमियत होती है। हाफिज और तमाम उलेमाओं को मुसलमान अपने सर का ताज मानते हैं, और इसी लिए शरीयत पर अमल करते हुए इमामों की कद्र करना अपनी सबसे बड़ी जिम्मेदारी मानते हैं। पर आज के दौर में कुछ मस्जिदों में इमाम को कमेटियां सिर्फ नौकर की हैसियत से देखती हैं और सिर्फ पांच वक्त की नमाज तक महदूद कर देती हैं। तब कहीं ना कहीं इमाम की आजादी छीन ली जाती है, लेकिन इससे दीन और कौम का बड़ा नुकसान होता है। पर वहीं कुछ ऐसी भी मस्जिदें हैं जिनमें इमामों, हाफिजों, मौलवियों को दिल से इज्जत दी जाती है और उनकी बात सुनी जाती है। साथ ही इमाम भी लोगों को मुत्ताहिद करने के लिए अपनी जी-जान से मेहनत करते हैं। ऐसी ही मस्जिद संगम विहार जामा मस्जिद अलविया है, जिसमें इमाम हाफिज इकबाल साहब लगभग 20 सालों से इमाम हैं। मस्जिद के सदर साहब अब्दुल हमीद साहब के साथ बेहतरीन तरीके से मस्जिद को आबाद करने और मस्जिद की बेहतरी के लिए हाफिज इकबाल साहब का कमेटी और नमाजियों के साथ पूरी तरह तालमेल बेहतरीन तरीके से चलता रहा है। हाफिज इकबाल साहब के साथ अब नौजवानों की टीम भी मस्जिद की देखभाल करती है। आबिद साहब, जहांगीर साहब, जावेद साहब, शमशाद, मोनू साहब, जाबिर साहब, कमरुद्दीन साहब, खुर्शीद साहब, शकील मंसूरी साहब, गफूर साहब, मस्जिद सदर अब्दुल हमीद साहब की सरपरस्ती में सभी लोग मिलकर मस्जिद के लिए काम कर रहे हैं, और काम मस्जिद में नजर भी आ रहा है। इलाके के लोग मस्जिद में होते हुए बेहतरीन कामों से काफी खुश हैं। दो-तीन सालों से खिदमत के लिए बनी एक और टीम बहुत जबरदस्त काम कर रही है। इस टीम में ज्यादातर कारोबारी लोग हैं। ये टीम जब भी मौका मिलता है, मस्जिद में इकट्ठे होते हैं और देखते हैं कि मस्जिद में क्या-क्या जरूरतें हैं। उसके हिसाब से खुद अपने आपस में उस रकम को इकट्ठा करके काम को अंजाम पहुंचा देते हैं। अल्लाह इनकी खिदमत को कुबूल फरमाए। इन बेहतरीन लोगों के मुख्य नाम हैं: आबिद भाई, अहमद भाई, इरफान भाई, यासीन भाई, वसीम भाई, अतीक भाई, शमशाद भाई, गुड्डू भाई, जुल्फकार भाई, मुस्तफा भाई, उमर भाई, राजू भाई, और भी कई साथी बेहतरीन मिलकर काम कर रहे हैं। इसी कड़ी में जामा मस्जिद अलविया में इस बार तरावीह की नमाज हाफिज इकबाल साहब ने पढ़ाई और एक कुरान मुकम्मल किया। तरावीह पूरी होने पर नमाजियों और कमेटी ने दिल खोलकर अपने उलेमा का भरपूर इस्तकबाल भी किया और बेहतरीन नजराने पेश किए। मुकम्मल सुन्नत तराबीह में हाफिज इकबाल साहब को एक लाख पच्चीस हजार नजराना मस्जिद कमेटी की तरफ से और मस्जिद की खिदमत करने वाली एक और टीम ने 1 लाख अपनी तरफ से दिया। हाफिज इकबाल साहब को टोटल 2 लाख 25 हजार नजराना दिया गया। साथ ही तमाम नमाजियों ने भी तोहफे दिए। इसके साथ-साथ मुअज्जिन साहब को भी 40 हजार रुपए का नजराना और कई तोहफे दिए गए। माशा अल्लाह।