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उत्तर प्रदेश: गाज़ीपुर में फौजी के बेटे पर हमला, आरोपी बचा पुलिस पर संरक्षण का आरोप
- Photo by : social media
संक्षेप
उत्तर प्रदेश: सरकार भले ही “अपराध मुक्त प्रदेश” का दावा कर रही हो, लेकिन ज़मीनी हकीकत इससे ठीक उलट है। गाज़ीपुर जनपद में कानून का राज नहीं, बल्कि अपराधियों का बोलबाला है —
विस्तार
उत्तर प्रदेश: सरकार भले ही “अपराध मुक्त प्रदेश” का दावा कर रही हो, लेकिन ज़मीनी हकीकत इससे ठीक उलट है। गाज़ीपुर जनपद में कानून का राज नहीं, बल्कि अपराधियों का बोलबाला है — और यह सब हो रहा है जिला प्रशासन और थाना करंडा की खुली शह पर। ग्राम मनपुर, थाना करंडा निवासी सेवानिवृत्त फौजी कनहैया सिंह के पुत्र उत्तम सिंह पर 18 अक्टूबर की रात लगभग 8:30 बजे ग्राम प्रधान पद के प्रत्याशी आनंद दूबे उर्फ चुलबुल दूबे ने अपने 10–12 नकाबपोश साथियों के साथ मिलकर जानलेवा हमला किया। शराब ठेके के भीतर ले जाकर उसे बेरहमी से पीटा गया, उसकी लाइसेंसी बंदूक तोड़ दी गई और मोबाइल छीनकर तोड़ डाला गया। गंभीर रूप से घायल उत्तम को करंडा से जिला अस्पताल और फिर बनारस रेफर किया गया।
CCTV फुटेज में दर्ज है पूरी घटना — फिर भी FIR नहीं। सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि शराब ठेके के CCTV कैमरे में पूरी घटना स्पष्ट रूप से रिकॉर्ड है। पीड़ित पक्ष ने फुटेज भी प्रस्तुत किया है, फिर भी थाना करंडा ने मुख्य आरोपी आनंद दूबे के विरुद्ध FIR दर्ज नहीं की। उल्टा SSP गाज़ीपुर के मौखिक आदेश पर SHO करंडा ने अधमरे पीड़ित उत्तम सिंह पर ही मुकदमा दर्ज कर दिया।
प्रश्न उठते हैं क्या गाज़ीपुर पुलिस अब अपराधियों की ढाल बन चुकी है? SHO करंडा और SSP गाज़ीपुर किसके इशारे पर पीड़ित को ही अपराधी बना रहे हैं? क्या समाजवादी पार्टी के नेता राजकुमार पांडेय का दबाव प्रशासन पर हावी है? क्या अपराध मुक्त प्रदेश” का नारा सिर्फ पोस्टरों और भाषणों तक सीमित है प्रशासन की चुप्पी — अपराधियों की ताकत ग्रामवासियों का कहना है कि आनंद दूबे पहले भी कई आपराधिक मामलों में लिप्त रहा है। उसके खिलाफ पहले से कई FIR दर्ज हैं, फिर भी वह खुलेआम घूम रहा है और दहशत फैला रहा है। SHO करंडा और SSP की चुप्पी ने यह स्पष्ट कर दिया है कि प्रशासन अपराधियों के साथ खड़ा है, न कि पीड़ितों के।जनता की मांग शराब ठेके के CCTV फुटेज के आधार पर तत्काल FIR दर्ज की जाए। आनंद दूबे उर्फ चुलबुल और उसके साथियों की गिरफ्तारी हो। SHO करंडा और SSP गाज़ीपुर की भूमिका की न्यायिक जांच कर उन्हें निलंबित किया जाए। पीड़ित परिवार को सुरक्षा और न्यायिक संरक्षण दिया जाए। जनता पूछ रही है जब एक फौजी का बेटा सुरक्षित नहीं, तो आम नागरिक की क्या बिसात? क्या गाज़ीपुर में कानून का राज है या अपराधियों का? क्या SSP और SHO की वर्दी अब अपराधियों की ढाल बन चुकी है? क्या सरकार की ‘जीरो टॉलरेंस’ नीति सिर्फ दिखावा है यह मामला अब सिर्फ एक परिवार की लड़ाई नहीं, बल्कि पूरे जनपद की अस्मिता और कानून व्यवस्था की परीक्षा है। यदि अब भी प्रशासन नहीं जागा, तो जनता सड़कों पर उतरने को मजबूर होगी।