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झारखण्ड: थाना से 600 मीटर दूर कोयला माफियाओं का आतंक, प्रशासन मौन
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संक्षेप
झारखण्ड: देश की कोयला राजधानी कहलाने वाला धनबाद आज एक ऐसे संकट से जूझ रहा है, जिसने न केवल कानून-व्यवस्था को सवालों के घेरे में खड़ा कर दिया है बल्कि आम जनता के
विस्तार
झारखण्ड: देश की कोयला राजधानी कहलाने वाला धनबाद आज एक ऐसे संकट से जूझ रहा है, जिसने न केवल कानून-व्यवस्था को सवालों के घेरे में खड़ा कर दिया है बल्कि आम जनता के जीवन को भी असुरक्षित बना दिया है। यह संकट है कोयला माफियाओं के आतंक का। बरोरा थाना से महज 600 मीटर की दूरी पर सिंदवारतांड के बीचोंबीच अवैध खनन और कोयले की ढुलाई का खेल खुलेआम चल रहा है। हैरानी की बात यह है कि यह सब कुछ पुलिस-प्रशासन की नाक के नीचे हो रहा है और इसके बावजूद कार्रवाई के नाम पर सन्नाटा पसरा हुआ है। थाने के पास ही काला कारोबार जहां जनता उम्मीद करती है कि थाना उसकी सुरक्षा का गढ़ होगा, वहीं बरोरा थाना से कुछ ही दूरी पर कोयले का यह साम्राज्य कानून को ठेंगा दिखा रहा है। दिन-रात चलने वाले अवैध खनन और ट्रक-ट्रैक्टरों की आवाजाही से स्थानीय लोगों का जीना मुहाल हो चुका है। प्रतिदिन दर्जनों गाड़ियाँ कोयले से लदी निकलती हैं और कोई रोकने-टोकने वाला नहीं होता। स्थानीय लोगों का कहना है कि पुलिस की गश्ती गाड़ियाँ भी उसी रास्ते से गुजरती हैं, परंतु वे इस कारोबार पर आँखें मूँद लेती हैं। प्रशासनिक और राजनीतिक संलिप्तता ग्रामीणों और सूत्रों का दावा है कि इस गोरखधंधे में केवल स्थानीय दलाल या ट्रक मालिक ही शामिल नहीं हैं, बल्कि राजनीतिक संरक्षण, पुलिस और प्रशासनिक तंत्र की संलिप्तता भी गहरी है। यह धंधा इतना बड़ा है कि बिना ऊँचे स्तर पर मिलीभगत के चल ही नहीं सकता। जब-जब किसी अधिकारी ने कार्रवाई की पहल की, तब-तब ऊपर से दबाव डालकर फाइलें बंद कर दी गईं। यही वजह है कि कोयला माफियाओं का हौसला इतना बुलंद है कि वे थाने से कुछ ही दूरी पर अपनी अवैध खदानें चलाने में भी नहीं हिचकते। जनता पर दोहरी मार इस अवैध कारोबार का खामियाजा सबसे ज्यादा स्थानीय जनता को भुगतना पड़ रहा है। दिन-रात उड़ने वाली कोयले की धूल और धुआँ ग्रामीणों के जीवन को जहरीला बना रहे हैं। बच्चे खाँसी और दमा जैसी बीमारियों से पीड़ित हो रहे हैं, बुजुर्ग सांस लेने में तकलीफ़ झेल रहे हैं। खेत-खलिहान बंजर हो रहे हैं और पीने के पानी तक पर असर पड़ रहा है। इसके बावजूद गरीब मजदूरों को मामूली दिहाड़ी पर इन खदानों में जान जोखिम में डालकर काम करना पड़ता है। मजदूरी से लेकर सुरक्षा तक, कहीं कोई पुख्ता इंतज़ाम नहीं है। मजदूरों की जिंदगी सस्ती और कोयला महँगा—यही इस खेल का असली चेहरा है। माफियाओं का संगठित नेटवर्क धनबाद का यह काला साम्राज्य केवल खनन और ट्रांसपोर्ट तक सीमित नहीं है। माफिया लोग अवैध डिपो बनाकर कोयले को इकट्ठा करते हैं, फिर ऊँचे दामों पर बेचते हैं। इस प्रक्रिया में उन्हें स्थानीय नेताओं से लेकर बड़े राजनीतिक आकाओं तक का संरक्षण प्राप्त है। सूत्र बताते हैं कि हर ट्रक की आमदनी का एक हिस्सा सीधे “कट” के रूप में पुलिस और अन्य अधिकारियों तक पहुँचाया जाता है। यही कारण है कि अवैध खनन की आवाजें ऊपर तक जाने के बावजूद सबकुछ दबा दिया जाता है। लोकतंत्र और मीडिया पर सवाल सबसे चिंताजनक पहलू यह है कि स्थानीय मीडिया और जनप्रतिनिधि भी इस मुद्दे पर खामोश रहते हैं। या तो उन्हें माफियाओं ने खरीद लिया है या फिर डराकर चुप करा दिया गया है। चौथा स्तंभ कहे जाने वाले मीडिया की चुप्पी लोकतंत्र के लिए खतरनाक संकेत है। जब जनता की आवाज दबा दी जाए और सच लिखने वालों को डराया-धमकाया जाए, तो यह सवाल उठना लाजिमी है कि लोकतंत्र का प्रहरी आखिर किसके लिए काम कर रहा है। बदलाव की जरूरत धनबाद में फल-फूल रहे इस कोयला साम्राज्य को खत्म करना केवल कानून-व्यवस्था का सवाल नहीं है, बल्कि यह जनता के अस्तित्व का प्रश्न बन चुका है। सरकार और प्रशासन को चाहिए कि वे इस नेटवर्क को जड़ से खत्म करें, मजदूरों की सुरक्षा सुनिश्चित करें और पर्यावरण की रक्षा करें। जब तक कड़े कदम नहीं उठाए जाएंगे, तब तक सिंदवारतांड से लेकर पूरे झारखंड में कोयला माफियाओं का आतंक फैला रहेगा। बड़ा खुलासा जल्द NCR समाचार की टीम लगातार इस पूरे नेटवर्क पर काम कर रही है। बहुत जल्द कोयला माफियाओं के नाम, पते और मोबाइल नंबर सहित पूरी लिस्ट उजागर की जाएगी, ताकि जनता को असली सच्चाई सामने आ सके और जिम्मेदार लोगों को जवाबदेह ठहराया जा सके। यह केवल एक पत्रकारिता की जिम्मेदारी नहीं है, बल्कि समाज और आने वाली पीढ़ियों के भविष्य की लड़ाई भी है।