Contact for Advertisement 9650503773


मध्य प्रदेश: भारतीय संस्कृति एवं ज्ञान परंपरा को अक्षुण्ण रखना हमारा दायित्व- कुलपति प्रो. नीलिमा गुप्ता 

- Photo by : NCR Samachar

मध्य प्रदेश  Published by: Mukesh Haryani, Date: 13/09/2023 05:54:41 pm Share:
  • मध्य प्रदेश
  • Published by: Mukesh Haryani,
  • Date:
  • 13/09/2023 05:54:41 pm
Share:

संक्षेप

मध्य प्रदेश: डॉ हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय, सागर एवं शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास, नई दिल्ली के संयुक्त तत्त्वावधान में भारतीय ज्ञान परंपरा: वैदिक गणित और चरित्र निर्माण एवं व्यक्तित्व का समग्र विकास विषय पर तीन दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला के अंतिम दिवस पर समापन सत्र आयोजित किया गया। वैदिक मंत्रोच्चार एवं अतिथियों द्वारा देवी सरस्वती और डॉ गौर की प्रतिमा पर माल्यार्पण एवं दीप प्रज्वलन किया गया.

विस्तार

मध्य प्रदेश: डॉ हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय, सागर एवं शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास, नई दिल्ली के संयुक्त तत्त्वावधान में भारतीय ज्ञान परंपरा: वैदिक गणित और चरित्र निर्माण एवं व्यक्तित्व का समग्र विकास विषय पर तीन दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला के अंतिम दिवस पर समापन सत्र आयोजित किया गया। वैदिक मंत्रोच्चार एवं अतिथियों द्वारा देवी सरस्वती और डॉ गौर की प्रतिमा पर माल्यार्पण एवं दीप प्रज्वलन किया गया. इस अवसर पर वैदिक गणित विशेषज्ञ श्रीराम चौथाईवाले, डॉ. अजय तिवारी, डॉ. राकेश भाटिया, डॉ. अनुराधा गुप्ता विशिष्ट अतिथि के रूप मंं उपस्थित थे. इस दौरान संयोजक प्रो. दिवाकर शुक्ला एवं कुलसचिव डॉ रंजन प्रधान भी मंचासीन थे. कार्यक्रम की अध्यक्षता विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो. नीलिमा गुप्ता ने की. कार्यशाला के संयोजक सचिव डॉ. शशि सिंह जी द्वारा सम्पूर्ण कार्यशाला के सभी सत्रों का सार प्रस्तुत किया गया।


कुलपति प्रो. नीलिमा गुप्ता ने अध्यक्षीय वक्तव्य देते हुए कहा कि भारतवर्ष वैदिक संस्कृति से जुड़ा रहा है. हमारा कर्त्तव्य है कि हम उस पर पुनः चिंतन करें, मनन करें और मंथन के द्वारा आगे ले जाएं. इसी प्रविधि से हम अपनी भारतीय संस्कृति एवं ज्ञान परंपरा को अक्षुण्ण रख सकते हैं. उन्होंने कहा कि हम एक सभ्य संस्कृति के वंशज है और ये कार्यशाला उसी संस्कृति का पुनः स्मरण करवाने का एक प्रयास थी। राष्ट्रीय शिक्षा नीति का ध्येय है कि भारतीय ज्ञान परंपरा सो संरक्षित रखते हुए ज्ञान के विविध अनुशासनों में इसकी महत्ता और उपयोगिता को स्थापित करते हुए इसमें नवीन अनुसन्धान हो. विश्वविद्यालय में स्थापित वैदिक अध्ययन विभाग इसी उद्देश्य के साथ कार्य कर रहा है. इसमें संचालित नए पाठ्यक्रमों के माध्यम से हम भारतीय ज्ञान पद्धति की प्रासंगिकता और उसके महत्त्व को जान पायेंगे. चरित्र निर्माण भी इसी परंपरा का एक आयाम है जिसे हमें अपने विद्यार्थियों के बीच करना है. विद्यार्थी ही इसके सच्चे अग्रदूत हैं. इस कार्यशाला का उद्देश विश्वविद्यालय में अध्यनरत छात्र छात्राओं को वैदिक गणित की ज्ञान परंपरा को आत्मसात करवाना था।  अब हम भारतीय संस्कृति एवं संस्कार को आगे ले जाने के लिए सक्षम बन चुके हैं. इसका प्रदर्शन हमने  जी 20 समिट में भी किया। उन्होंने बताया कि बहुत जल्द ही विश्वविद्यालय द्वारा भारतीय सेना के जवानों के लिए भी इसी तरह की कार्यशाला का आयोजन करेगा. इसके साथ ही आत्मनिर्भर सागर अभियान के तहत कौशल विकास मेला आयोजित करने की योजना पर कार्य किया जा रहा है.  


विशिष्ट अतिथि डॉ श्रीराम चौथईवाले ने कहा कि यह कार्यशाला, पाठशाला में रूपांतरित हुई और भविष्य में ज्ञानशाला बनेगी। मां सरस्वती के हाथ में जो पुस्तक विद्यमान है वह हमेशा सीखने और सीखने की परंपरा को दर्शाती है और उसी से प्रेरणा लेते हुए हम सभी को इस परंपरा को आगे बढ़ाना चाहिए।
विशिष्ट अतिथि डॉ. अजय तिवारी ने सभी आयोजकों एवं समन्वयकों को कार्यशाला को सफल स्वरूप देने के लिए धन्यवाद ज्ञापित करते हुए कहा कि यह कार्यशाला अपने उद्देश्यों में सफल हुई है और आगे आने वाले समय में विश्वविद्यालय चरित्र निर्माण एवं वैदिक अध्ययन का एक बड़ा केंद्र बनेगा. 


पोस्टर निर्माण प्रतियोगिता के विजेताओं को मिले प्रमाण-पत्र 
कार्यशाला के दौरान वैदिक संस्कृति और चरित्र निर्माण की थीम पर पोस्टर निर्माण प्रतियोगिता आयोजित की गई थी. इसके विजेताओं प्रदीप कुमार,अभिषेक उपाध्याय,मौनालीशा नायक को कुलपति द्वारा प्रमाण-पत्र प्रदान किये गए. वैभव, कालभूत, एवं शिवानी ने सांत्वना पुरस्कार प्राप्त किया। सत्र का संचालन डॉ नौनिहाल गौतम जी ने किया तथा आभार प्रो.दिवाकर शुक्ल ने ज्ञापित किया. सत्र में विश्वविद्यालय के प्राध्यापक, शोधार्थी, विद्यार्थी एवं शहर के गणमान्य अतिथि उपस्थित रहे. 


वैदिक गणित की पाठ्यचर्या पर हुआ मंथन 
तृतीय दिवस के प्रथम सत्र में वैदिक गणित पाठ्क्रम निर्माण की बैठक अतिथि गृह में सम्पन्न हुई जिसमें विद्वानों द्वारा वैदिक गणित के डिग्री, डिप्लोमा और एडवांस डिप्लोमा पाठ्यचर्या पर चर्चा करते हुए पाठ्यक्रम निर्माण किया गया. वैदिक गणित के विद्वान श्रीराम चौथाईवाले ने पाठ्यक्रम को केडिट कोर्स के माध्यम से संचालिते किये जाने का सुझाव दिया जिससे छात्र अधिक रूचि से पढ़ सकें. उन्होंने अनुभाव को साझा करते हुए कहा कि क्रेडिट विधि से इन विषयों को पढाये जाने वाले संस्थानों में बहुत ही सकारात्मक परिणाम देखने को मिले हैं | वैदिक गणित के विद्वान डॉ. राकेश भाटिया जी ने कहा इस पाठ्यक्रम की सामग्री विकास को लेकर कई सुझाव दिए. उन्होंने शिक्षण प्रविधियों पर भी चर्चा कि नवाचारी प्रविधि से इस पाठ्यक्रम की ओर बच्चों को आकर्षित किया जा सकता है. इस बैठक में प्रो. दिवाकर शुक्ला, श्रीराम चौथाईवाले, डॉ. राकेश भाटिया, प्रो. अनुराधा गुप्ता, डॉ. शशिकुमार सिंह, शिवानी खरे, डॉ. आयुष गुप्ता, जितेन्द्र मोहन श्रीवास्तव उपस्थित रहे और अपने महत्वपूर्ण सुझाव दिए | 


फीडबैक सत्र में प्रतिभागियों ने दिए सुझाव, प्रश्नों के समाधान भी हुए
फीडबैक सत्र में प्रतिभागियों से फीडबैक लिया गया जिसमें तीनों दिन उपस्थित प्रतिभागियों ने अपनी जिज्ञासाओं को मंच पर उपस्थित वक्ताओं के समक्ष रखा। मंच पर उपस्थित वक्ताओं ने उनका समाधान किया। प्रो.बी.के. श्रीवास्तव ने प्रतिभागियों से सार्थक संवाद किया और प्रतिभागियों के प्रश्नों का समाधान किया। प्रो.अंबिकादत्त शर्मा जी ने भारतीय संस्कृति के संदर्भ में कहा कि "हमारी संस्कृति हमेशा से उदार रही है और हमारे सीखने की संस्कृति भी सदैव से उदार ही रही है।" विश्व गुरू के प्रश्न पर उन्होंने कहा कि 'विश्व जिन मूल्यों से संचालित होता है जब वे मूल्य हमारे व्यवहार में उतरते हैं तो विश्व हमारा गुरू हो जाता है।" इसके साथ ही पंचकोशों से संबंधित जिज्ञासाएं भी प्रतिभागियों ने उपस्थित विद्वानों के समक्ष रखीं जिस पर वक्ताओं द्वारा सार्थक चर्चा की गई। अतिथि पी.आर.मलैया जी ने अपने वक्तव्य से प्रतिभागियों की जिज्ञासाओं को संतुष्ट किया। प्रतिभागियों ने आगामी सत्रों में कुछ सुधारात्मक सुझाव भी मंचासीन विद्वानों के समक्ष रखे। अतिथि डॉ. बिंदु सिंह ने कहा कि "सभी को 6 एस (सेवा,साधना,सत्संग,स्वाध्याय,संस्कृति और संस्कार) अपनाना चाहिए। श्री टीकाराम त्रिपाठी ने भी प्रतिभागियों का मार्गदर्शन किया. सत्र की अध्यक्षता प्रो अंबिकादत्त शर्मा ने की. सत्र संचालन डॉ संजय शर्मा ने आभार डॉ. शशिसिंह ने ज्ञापित किया.

 
लघु नाटिका का हुआ मंचन 
तैतिरीय उपनिषद के भृगुवल्ली में वर्णित अन्नमय, प्राणमय, मनोमय, विज्ञानमय एवं आनंदमय के मूल स्वरुप को आधार बनाकर संस्क्रृत विभाग के विद्यार्थियों के द्वारा अत्यंत रोचक लघु नाटिका प्रस्तुत की गई. जिसके माध्यम से पंच कोशीय उपागम की मूल अवधारणा को प्रत्यक्ष रूप में अभिमंचित होते हुए देखकर दर्शक दीर्घा रोमांचित हो उठी. लघु नाटिका का निर्देशन संस्क्रृत विभाग के सहायक प्राध्यापक डॉ नौनिहाल गौतम ने किया.


Featured News