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हरियाणा: हरियाणवी बोली नहीं, हिंदी की सहभाषा है: डॉ. रामनिवास 'मानव'
फूहड़ सांगों, अश्लील रागनियों और भोंडे चुटकुलों से आगे बढ़ने की आवश्यकता: डॉ. 'मानव'
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हरियाणा: हरियाणवी बोली के समृद्ध इतिहास और विकास पर विचार करते हुए, हरियाणा के प्रमुख विद्वान डॉ. रामनिवास 'मानव' ने इसे केवल एक बोली नहीं, बल्कि हिंदी की सहभाषा बताया। उनका मानना है कि हरियाणवी का विकास संस्कृत से हुआ है और यह बोली के बजाय भाषा का दर्जा पाने का हकदार है। हरियाणा के समकालीन हिंदी साहित्य में प्रथम पीएचडी और डीलिट् प्राप्त करने वाले डॉ. 'मानव' ने इस पर जोर दिया कि हरियाणा राज्य के गठन के समय ही हरियाणवी को राजभाषा का दर्जा मिलना चाहिए था। डॉ. 'मानव' ने सरकारों की उपेक्षा और गलत भाषा-नीति को हरियाणवी के भाषा बनने में मुख्य बाधा बताया। उनका कहना था कि जबकि पंजाब, उर्दू और संस्कृत अकादमियां स्थापित हुईं, हरियाणवी साहित्य अकादमी के गठन पर कोई ध्यान नहीं दिया गया। इसके परिणामस्वरूप हरियाणवी को गंवई बोली के रूप में ही देखा जाता रहा है, खासकर संभ्रांत वर्ग में। उन्होंने सुझाव दिया कि हरियाणवी को भाषा का दर्जा देने के लिए साहित्य अकादमी का गठन, मानकीकरण, स्तरीय पत्रिकाओं का प्रकाशन, और उच्च स्तरीय शोधकार्य जरूरी हैं। डॉ. 'मानव' ने यह भी कहा कि फूहड़ सांगों और अश्लील रागनियों ने हरियाणवी बोली के समृद्ध साहित्य को नुकसान पहुँचाया है। अब समय आ गया है कि हम इनसे आगे बढ़ें और समकालीन सृजनात्मक साहित्य पर ध्यान केंद्रित करें। उन्होंने यह भी सुझाव दिया कि प्रदेश के सभी विश्वविद्यालयों में हरियाणवी पर शोधकार्य करवाया जाए और नियमित रूप से विचार-गोष्ठियों का आयोजन किया जाए। हरियाणवी साहित्य में योगदान देने वाले रचनाकारों की सराहना करते हुए, डॉ. 'मानव' ने कहा कि हरियाणवी गद्य के क्षेत्र में अभी और प्रयास किए जाने की आवश्यकता है। वे मानते हैं कि हरियाणवी का व्याकरण मानकीकरण भी बेहद महत्वपूर्ण है, ताकि विभिन्न सांस्कृतिक अंचलों को उचित सम्मान मिल सके। डॉ. 'मानव' ने यह स्पष्ट किया कि हरियाणवी बोली को एक भाषा का दर्जा दिलाने के लिए सभी हरियाणवी-प्रेमियों को एकजुट होकर काम करना होगा और इस दिशा में ठोस प्रयास किए जाने चाहिए।
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