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गुजरात: आरबीआई डेटा का खुलासा, कैसे भाजपा का गुजरात मॉडल मजदूरों और किसानों को कर रहा है विफल
कैसे भाजपा का गुजरात मॉडल मजदूरों और किसानों को कर रहा है विफल - Photo by : Social Media
संक्षेप
गुजरात: आरबीआई डेटा का खुलासा कैसे भाजपा का गुजरात मॉडल मजदूरों और किसानों को विफल कर रहा है ।प्रधान मंत्री जवाब दे, क्यों गुजरात में मजदूरों को जीवित रहने लायक मज़दूरी भी नहीं दिया जाता है। मजदूरों और युवाओं पर लंबे समय से चले आ रहे कृषि संकट के गंभीर प्रभाव जनता नव-उदारवादी सुधारों की विफल नीति को रद्द करने की मांग करेंगी हाल ही में भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा संकलित और जारी किए गए आंकड़ों ने कॉर्पोरेट निवेश पर आधारित विकास
विस्तार
गुजरात: आरबीआई डेटा का खुलासा कैसे भाजपा का गुजरात मॉडल मजदूरों और किसानों को विफल कर रहा है ।प्रधान मंत्री जवाब दे, क्यों गुजरात में मजदूरों को जीवित रहने लायक मज़दूरी भी नहीं दिया जाता है। मजदूरों और युवाओं पर लंबे समय से चले आ रहे कृषि संकट के गंभीर प्रभाव जनता नव-उदारवादी सुधारों की विफल नीति को रद्द करने की मांग करेंगी हाल ही में भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा संकलित और जारी किए गए आंकड़ों ने कॉर्पोरेट निवेश पर आधारित विकास के अत्यधिक प्रचारित गुजरात मॉडल की सच्चाई को उजागर किया है, किस तरह यह मजदूरों, किसानों और युवाओं के हितों की विरोधी है। भाजपा शासित तीन राज्यों गुजरात, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश में मजदूरों को दैनिक मजदूरी राष्ट्रीय औसत से काफी कम मिल रही है। आरबीआई के आंकड़ों के मुताबिक गुजरात में खेत मजदूरों, गैर-कृषि मजदूरों और निर्माण मजदूरों को प्रतिदिन 241.9 रुपये, 273.1 रुपये और 323.2 रुपये की मजदूरी मिलती है, जबकि राष्ट्रीय औसत क्रमशः 345.7 रुपये, 348 रुपये और 393.3 रुपये है। मध्य प्रदेश में उपरोक्त तीन श्रेणियों की मजदूरी 221.9 रुपये, 246.3 रुपये और 278.7 रुपये है। दूसरी ओर, केरल के मजदूरों को इन श्रेणियों में सबसे अधिक मजदूरी क्रमशः 764.3 रुपये, 696.6 रुपये और 852.5 रुपये मिलती है। केरल का एक प्रवासी मजदूर गुजरात, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश में रहने वाले प्रवासी मजदूर की तुलना में तीन गुना अधिक आय अर्जित करता है। उपलब्ध रिपोर्ट के अनुसार, केरल में 25 लाख प्रवासी मजदूर रहते हैं। पलायन करने वाला किसान वर्ग मजदूरों की आरक्षित सेना के रूप में कार्य कर रहा है, जिसके कारण उन्हें बड़े पैमाने पर न्यूनतम मजदूरी एवं स्थिर रोजगार से वंचित किया जा रहा है, जिसके परिणामस्वरूप निजीकरण, कैजुअलाइजेशन और ठेकाकरण हो रहा है। मोदी सरकार ने 4 श्रम संहिताएं लागू करके श्रमिकों पर जी हमला किया है, जिससे उन्हें न्यूनतम वेतन, 8 घंटे का कार्य दिवस और ट्रेड यूनियन बनाने और बेहतर वेतन व लाभों के लिए सामूहिक सौदेबाजी करने के उनके कड़ी मेहनत से प्राप्त संविधान में निहित अधिकारों से वंचित कर दिया गया हैं। लंबे समय से जारी कृषि संकट का असर युवाओं के भविष्य पर भी पड़ रहा है। सेवाओं क्षेत्र में नौकरियों से औसत आय केवल 8000 रुपये से 15000 रुपये के बीच है, जो सम्मानजनक जीवन जीने के लिए पर्याप्त नहीं है। नरेंद्र मोदी, जो तीन बार गुजरात के मुख्यमंत्री और पिछले नौ वर्षों से प्रधान मंत्री थे, को लोगों को स्पष्टीकरण देना चाहियें कि गुजरात मज़दूरों को निर्वाह लायक मजदूरी क्यों नहीं देता है। मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार औद्योगीकरण और रोजगार सृजन सुनिश्चित करने में विफल रही है। जिससे मजदूरों, किसानों और युवाओं सहित देश की मेहनतकश जनता के जीवन में तबाही आ गई है।
मज़दूरों की मज़दूरी का निम्न स्तर लंबे समय से चले आ रहे कृषि संकट और इसके नतीजतन छोटे व मध्यम किसानों एवं खेत मजदूरों की कंगाली का प्रतिबिंब है। एमएसपी से इनकार तथा इनपुट पर सब्सिडी वापस लेने से कृषि घाटे का व्यवसाय बन गई है। शिक्षा और स्वास्थ्य के निजीकरण के कारण पारिवारिक खर्च में वृद्धि हुई। परिणामस्वरूप ग्रामीण ऋणग्रस्तता, गाँव से शहरी प्रवास का कारण बनती है और आंकड़ों के अनुसार देश में 23 करोड़ प्रवासी मजदूर हैं।
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